अच्छे दिन कब आयेगे ?
जब गरीब आदमी का बच्चा अपने पिता से अपने जन्मदिन पर कोई तोहफा मागता है तो पिता का एक ही जवाब होता है बेटा कुछ दिन बाद दिल दूंगा । और ये कुछ दिन कभी आते ही नहीं है । इस देश की ये क्या विडंबना है की गरीब सदा गरीब ही रह जाता है और अमीर ज्यादा आमीर होता जाता है सरकार कोई भी आये बदलता कुछ भी नहीं है सिवाय उनके बैंक बेलेंस के।
कभी किसी नेता ने सोचा की विदर्भ के किसी गाँव का दौरा किया जाये या मराठवाड़ा में सूखे की क्या हालत है इसका जायजा लिया जाये लगातार तीसरा साल सूखे की मार झेल रहा ये इलाका लगता है अब पानी की बून्द बून्द को तरसने के लिए तैयार है. केंद्र हो या राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती .
सारे मानवाधिकार वाले भी बस याकूब मेमन की सजा माफ़ करवाने में ही लगे रहते है क्यों कोई नहीं जाता है अदालत के दरवाजे पे किसानो का ऋण माफ़ करवाने या फिर उन की आत्महत्या का मुआवजा दिलवाने अच्छे दिन की आस में ६९ साल निकल गए पर हुआ क्या वही ढाक के तीन पात।
अब केंद्र की भाजपा सरकार ने नारा दिया था की अच्छे दिन आयेगे ,लो जी आ गए अच्छे दिन।
अप्रेल महीने में मै ट्रेन से नासिक जा रही थी तो सच कहु तो कलेजा मुँह को आ गया था सारे रेलवे लाइन के साथ ट्रॉली के ट्रॉली टमाटर फेके हुए थे। कीमत न मिल पाने की वजह से किसान मजबूरन ये कदम उठाते है। यहां क्युकी उनको लागत भी नहीं मिल रही होती है ,नतीजा किसान आत्महत्या।
अब जनता जनार्दन रो रही है प्याज के आसू ,अच्छे दिन की आस में हम 80 रु, किलो की प्याज भी खा ही रहे है अब क्या करे यही प्याज पहले भी एक सरकार गिरा चुकी है अब न जाने क्या होगा कहते है की इजिप्ट से प्याज की खेप आई है कहि ऐसा न हो की चाइना के चावल की तरह ये भी सिंथेटिक निकले और आम आदमी को लेने के देने पड़ जाए।
जनाब अब तो दिन बदलने से रहे सो हालात जस के तस रहने दो और अपने दम पे कुछ कर सको तो कर गुजरो माउंटेन मेन दशरथ माझी तरह जो पहाड़ को काट के सड़क निकाल सकता है तो आप भी धरती का सीना चीर के सोना उगा सकते हो।
और सरकार से लड़ के अपनी जबरजस्त जिद से अपना हक माग सकते हो
आत्महत्या हल नही हालात से भागना है
मेरे प्रिय किसान भाइयो इस बार जरूर अपने बच्चे को उसके जन्मदिन पे वो तोहफा दिल देना जो उसने मागा है
इस बार मत बोलना की कुछ दिन बाद दिल दूंगा .
जय हिन्द ।
जब गरीब आदमी का बच्चा अपने पिता से अपने जन्मदिन पर कोई तोहफा मागता है तो पिता का एक ही जवाब होता है बेटा कुछ दिन बाद दिल दूंगा । और ये कुछ दिन कभी आते ही नहीं है । इस देश की ये क्या विडंबना है की गरीब सदा गरीब ही रह जाता है और अमीर ज्यादा आमीर होता जाता है सरकार कोई भी आये बदलता कुछ भी नहीं है सिवाय उनके बैंक बेलेंस के।
कभी किसी नेता ने सोचा की विदर्भ के किसी गाँव का दौरा किया जाये या मराठवाड़ा में सूखे की क्या हालत है इसका जायजा लिया जाये लगातार तीसरा साल सूखे की मार झेल रहा ये इलाका लगता है अब पानी की बून्द बून्द को तरसने के लिए तैयार है. केंद्र हो या राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती .
सारे मानवाधिकार वाले भी बस याकूब मेमन की सजा माफ़ करवाने में ही लगे रहते है क्यों कोई नहीं जाता है अदालत के दरवाजे पे किसानो का ऋण माफ़ करवाने या फिर उन की आत्महत्या का मुआवजा दिलवाने अच्छे दिन की आस में ६९ साल निकल गए पर हुआ क्या वही ढाक के तीन पात।
अब केंद्र की भाजपा सरकार ने नारा दिया था की अच्छे दिन आयेगे ,लो जी आ गए अच्छे दिन।
अप्रेल महीने में मै ट्रेन से नासिक जा रही थी तो सच कहु तो कलेजा मुँह को आ गया था सारे रेलवे लाइन के साथ ट्रॉली के ट्रॉली टमाटर फेके हुए थे। कीमत न मिल पाने की वजह से किसान मजबूरन ये कदम उठाते है। यहां क्युकी उनको लागत भी नहीं मिल रही होती है ,नतीजा किसान आत्महत्या।
अब जनता जनार्दन रो रही है प्याज के आसू ,अच्छे दिन की आस में हम 80 रु, किलो की प्याज भी खा ही रहे है अब क्या करे यही प्याज पहले भी एक सरकार गिरा चुकी है अब न जाने क्या होगा कहते है की इजिप्ट से प्याज की खेप आई है कहि ऐसा न हो की चाइना के चावल की तरह ये भी सिंथेटिक निकले और आम आदमी को लेने के देने पड़ जाए।
जनाब अब तो दिन बदलने से रहे सो हालात जस के तस रहने दो और अपने दम पे कुछ कर सको तो कर गुजरो माउंटेन मेन दशरथ माझी तरह जो पहाड़ को काट के सड़क निकाल सकता है तो आप भी धरती का सीना चीर के सोना उगा सकते हो।
और सरकार से लड़ के अपनी जबरजस्त जिद से अपना हक माग सकते हो
आत्महत्या हल नही हालात से भागना है
मेरे प्रिय किसान भाइयो इस बार जरूर अपने बच्चे को उसके जन्मदिन पे वो तोहफा दिल देना जो उसने मागा है
इस बार मत बोलना की कुछ दिन बाद दिल दूंगा .
जय हिन्द ।